भोपाल रेलवे स्टेशन के मेन फुट ओवरब्रिज (एफओबी) से प्लेटफाॅर्म 2-3 को जोड़ने वाले रैंप के स्लैब का एक बड़ा हिस्सा गुरुवार सुबह 9 बजे अचानक भरभराकर गिर गया। घटना के वक्त ब्रिज के नीचे कई यात्री खड़े थे, जो तिरुपति-हजरत निजामुद्दीन एक्सप्रेस से उतरे थे। स्लैब के पत्थर इन्हीं लोगों पर जा गिरे। किसी का हाथ टूटा तो किसी का सिर फूटा। दो महिलाओं सहित 10 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इनमें 8 एक ही परिवार के हैं। चीख-पुकार से पूरे स्टेशन पर दहशत फैल गई।
आसपास मौजूद लोगों ने घायलों को मलबे से निकालकर हमीदिया और रेलवे हॉस्पिटल भेजा। लेकिन, इस हादसे ने रेलवे के सेफ्टी ऑडिट पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, 11 महीने पहले ही रेलवे इंजीनियर्स की टीम ने जांच के बाद इस ब्रिज को सेफ बताया था। जब रेलवे की सेफ रिपोर्ट पर सवाल उठे तो भोपाल रेल मंडल के डीआरएम उदय बोरवणकर ने कहा कि घटना स्ट्रक्चरल फेलियर के कारण हुई। जांच के लिए पश्चिम मध्य रेलवे के चीफ सेफ्टी ऑफिसर एपी पांडेय के नेतृत्व में तीन सदस्यीय समिति गठित की है। यह समिति शुक्रवार से जांच शुरू करेगी। जीआरपी ने भी घायलों के बयानों के आधार पर काम में लापरवाही बरतने वाले अज्ञात रेलकर्मियों पर केस दर्ज किया है।
इन बिंदुओं पर होगी जांच
- क्या एफओबी के स्ट्रक्चर की डिजाइन में कोई कमी थी।
- 1991- 92 में एफओबी के बनने के बाद उसमें जो बदलाव किए गए, उन बदलावों के साथ स्ट्रक्चर की डिजाइन में भी बदलाव हुआ क्या ?
- एफओबी में किए गए मॉडीफिकेशन के दौरान जिस निर्माण सामग्री का उपयोग किया गया, वह मानक स्तर की थी क्या ?
- एफअोबी के सेफ्टी ऑडिट के दौरान क्या अफसरों ने किसी प्रकार की लापरवाही की ?
- ऑडिट में सेफ्टी मेनुअल का पालन किया गया अथवा नहीं ?
- एफओबी के सेफ्टी ऑडिट में उसकी खामियां क्यों सामने नहीं आई ?
- ऑडिट रिपोर्ट की एफओबी को लेकर कोई सिफारिश की गई थी क्या ? अगर हां तो उस पर अमल हुआ अथवा नहीं ?
लापरवाही के 3 लूप होल
वेंडर का दावा- एक दिन पहले ही डिप्टी एसएस को सूचना दे दी थी, लेकिन अफसर नहीं जागे
एफओबी के नीचे वेंडर रमेश सिंह की शॉप है। उन्होंने हादसे के बाद दावा किया कि वह बुधवार दोपहर 1:40 बजे डिप्टी एसएस को सूचना दे चुके थे कि स्लैब का छल्ला गिर गया है। लेकिन, अफसरों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अफसर उसी समय ब्रिज पर ट्रैफिक रोककर जांच कराते तो शायद लोगों की जिंदगी दांव पर न लगती। हालांकि रमेश शाम को बयान से पलट गए। दूसरी ओर, जब डिप्टी एसएस अनिल दीक्षित से रमेश के दावे के बारे में पूछा गया तो वे बोले- ऐसी कोई सूचना उन्हें नहीं दी गई।
11 महीने में एफओबी इतना कमजोर कैसे हो गया?
यह एफओबी 1992 में बना था और सिंहस्थ के दौरान वर्ष 2016 में इस पर लगे टाइल्स बदले गए थे। यानी 28 साल में सिर्फ एक बार इस पर मेंटेनेंस का काम हुआ। 11 महीने पहले 19 मार्च 2019 में रेलवे के इंजीनियर्स ने सेफ्टी ऑडिट के दौरान इसे यात्रियों के लिए सुरक्षित बताया था।
सेफ्टी ऑडिट में लोड टेस्ट क्यों नहीं हुआ?
सेफ्टी ऑडिट के दौरान रेलवे इंजीनियर्स ने एफओबी का लोड टेस्ट नहीं किया था। अफसरों ने बिना लोड टेस्ट किए ही ब्रिज की ऑडिट रिपोर्ट में उसे यात्रियों के लिए सुरक्षित बता दिया था।
इसलिए गिरा : ज्वाइंट की वेल्डिंग खुल गई थी
हादसे की शुरुआती जांच में सामने आया कि प्लेटफाॅर्म नंबर 1 से 6 को जोड़ने वाले एफओबी के प्लेटफाॅर्म नंबर 2-3 की ओर जाने वाले रैंप का स्लैब वेल्डिंग खुलने के कारण ढहा। जांच टीम में शामिल एक अफसर के मुताबिक एफओबी से स्लैब को बेल्डिंग करके जोड़ा गया था, उसकी क्वालिटी सही नहीं थी।